Tum bhi - 1 in Hindi Love Stories by S Sinha books and stories PDF | तुम भी - 1

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तुम भी - 1

एपिसोड 1 - पुराने क्लासमेट नेहा और प्रेम का अचानक मिलना

आमतौर पर झारखंड में जून के दूसरे या तीसरे सप्ताह तक मानसून दस्तक दे ही देती है. इस वर्ष जरा देर से आयी, जून के आखिरी सप्ताह में. तपती गर्मी के बाद पहली बारिश होने से मिट्टी से उठती सोंधी महक हवा में फ़ैल चुकी थी. नेहा को यह महक बहुत अच्छी लगी. वह घर से बाहर निकल कर बैकयार्ड के बरामदे में कुर्सी पर बैठ कर बरसात और मिट्टी की गंध दोनों का आनंद ले रही थी.

बारिश काफी तेज हो चली थी साथ में हवा भी तीव्र गति से बहने लगी. उसने अपने बैकयार्ड में पपीते का पौधा लगाया था जो फलों और तेज हवा दोनों का बोझ एक साथ झेल न सका. पपीता का पौधा धराशायी हो गया. कुछ पके और कुछ अधपके फल पौधे से अलग हो कर जमीन पर बिखर गए. तभी अचानक बिजली चली गयी. शाम भी ढल चुकी थी, काफी अँधेरा था. उसने मोबाइल फोन का टॉर्च जलाया और वह अंदर गयी.

नेहा को चाय की तलब हुई. उसने मोमबत्ती खोज कर उसे जलाया फिर किचेन में गैस पर चाय का पानी चढ़ाया. किचेन की खिड़की पर बारिश की बूंदों का शोर तक तो ठीक था पर बिजली की कड़क सुन कर वह डर गयी. जल्दी से चाय ले कर ड्राइंग रूम में आ गयी. उसने सोचा अच्छा था कि डिनर उसने पहले ही बना लिया था.

चाय की चुस्कियां लेते लेते वह अतीत की किताब के पन्ने पलटने लगी. दो साल पहले तक बरसात के दिनों में वह जय के साथ इसी तरह बरामदे में बैठी चाय पिया करती थी. जय को पता था कि बरसात में बिजली की कड़क और अँधेरे से नेहा बहुत डरती है. ऐसे में वह नेहा के करीब आ कर उस का हाथ थाम लेता था. नेहा भी उसके स्पर्श मात्र से सहज हो जाती थी. चाय खत्म कर उसने कप को टेबल पर रखा फिर सोचने लगी कि अगर मौसम कल सुबह तह ठीक नहीं हुआ तब वह घर से कैसे निकलेगी. कल उसके जीवन का अहम फैसला आने वाला है. उसकी पुरानी फ़िएट कार बरसात के दिनों में अक्सर नखरे दिखाने लगती है. कभी स्टार्ट करने में तंग करती तो कभी डिस्ट्रीब्यूटर में मॉइस्चर आने से बंद हो जाती है. जय ने कहा था कि कुछ महीनों में उसका प्रोमोशन हो जायेगा फिर वह कम्पनी से कार लोन और कार अलाउंस के लिए हक़दार हो जायेगा. तब वह नयी मारुति आल्टो कार ले लेगा. पर किस्मत में कुछ और ही लिखा था. इसके पहले ही दोनों के रास्ते अलग हो गए. जो भी हो जय ने जुदा होते समय कार नेहा के लिए छोड़ गया था.

कुछ देर के बाद नेहा ने डिनर फ्रिज से निकाला. आलस्य में उसने आलू पराठे को गर्म नहीं किया और दही के साथ पराठे खाने बैठ गयी. जय को आलू पराठे के साथ सब्जी नहीं अच्छी लगती थी, वह दही और किसी अचार के साथ मजे ले कर खाया करता था. बिजली अभी तक गुल थी, टीवी देखने का सवाल नहीं था. इंटरनेट भी नहीं था इसलिए फोन पर भी कुछ नहीं देख सकती थी. वह उठ कर किचेन में गयी और जल्दी जल्दी बर्तन धोने लगी. उसे पता था कि ऐसे बरसात और आंधी तूफ़ान के दिन उसकी महरी नहीं आने वाली है. यही सोच कर उसने बर्तन रात में ही धो लिया ताकि सुबह जल्दी से तैयार हो कर निकल जाए.

डिनर के बाद फोन पर कुछ डाउनलोड किये पुराने गाने लगा कर वह बेड पर सोने गयी. नींद आने का सवाल ही नहीं था. एक तो अँधेरे का डर दूसरा कल क्या होने वाला है इसकी चिंता. अक्सर ऐसे मौसम में उसकी पड़ोसन की लड़की नेहा के साथ रात में सोने आया करती थी. पर पड़ोसन भी शहर से बाहर गयी थी. नेहा ने दूसरी नयी मोमबत्ती जलाई और उसे जलने दिया. उसे उम्मीद थी कि यह मोमबत्ती कम से कम तीन घंटे तक जरूर अँधेरे को दूर रखेगी और शायद तब तक वह सो जाये. पर उसकी आँखों में नींद कहाँ. उसने फोन में समय देखा, रात के बारह बज चुके थे, उस समय फोन की बैट्री दस परसेंट थी. कुछ देर बाद बारिश और तूफ़ान दोनों थम गए थे. तभी बिजली भी आ गयी. नेहा को बहुत सुकून मिला, उसने बिना देर किये फोन को चार्जिंग में लगाया. सुबह उसे कई जरूरी फोन कॉल आने की उम्मीद थी इसलिए फोन चार्ज रखना भी जरूरी था. उसे लगा कि अब वह सो सकती है और आधे घंटे के अंदर उसे नींद आ गयी.

नेहा जब सवेरे उठी बारिश तेज तो नहीं थी फिर भी रुक रुक कर रिमझिम बारिश हो रही थी. उसने सोचा ऐसे में कार से ही जाना ठीक रहेगा. उसका सबसे पहला काम था कार चेक कर लेना. गराज खोल कर उसने इग्निशन चाभी घुमाई, उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा. एक दो घरघराहट की आवाज के बाद इंजन स्टार्ट हो गया. थोड़ी देर कार को वार्म अप करने के बाद दो तीन बार उसने इंजन ऑन ऑफ कर के देखा. उसे तस्सली हो गयी कि आज कार उसे धोखा नहीं देगी. फिर उसने जल्दी से नहा धो कर टोस्ट और चाय बनायी. नाश्ता करते करते उसने न्यूज़ पेपर के हेड लाइन पढ़े और साथ में एक नजर टीवी के न्यूज़ चैनल पर डाली. बर्तन बिना धोये सिंक में रखा, अपना बैग और फाइल लिया और चलने के लिए तैयार हुई.

घर से निकलने के पहले नेहा ने अपने इष्टदेव की प्रार्थना की फिर मम्मी पापा की तस्वीर के सामने उन्हें मन ही मन प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लिया. पापा तो बचपन में ही गुजर गए थे. मम्मी ने पाल पोस कर बड़ा किया. जय से शादी के समय मम्मी जिन्दा थी और जय से ब्रेक अप के समय भी. मम्मी ने उसे बहुत समझाया था कि एक बार फिर से ठंडे दिमाग से अपने फैसले पर सोच ले. अगर कुछ कम्प्रोमाइज हो जाये तो बेहतर है. पर उसने अपना फैसला नहीं बदला. वह ठीक से समझ नहीं सकी थी कि मम्मी उसके फैसले से खुश थी कि नाराज. जो भी रहा हो उसकी मम्मी दो महीने बाद ही चल बसी.

नेहा ने घड़ी देखी, सुबह के आठ बजे थे. आधा घंटा उसे वकील के यहाँ जाने में लगता. वकील ने उसे दस बजे अपने चैम्बर में मिलने को बुलाया था. उसके केस की सुनवाई करीब 11 बजे होनी थी. फिर भी उसने वकील को फोन कर के कहा “ मैं जल्दी आना चाहती हूँ. एक दो पॉइंट पर और डिस्कस करना चाहती हूँ. “

“ आप आ सकती हैं पर हो सकता है तब तक मैं तैयार न हो सकूं. सम्भवतः आपको कुछ देर इंतजार करना पड़ सकता है. “

“ कोई बात नहीं, मैं वेट कर लूँगी “

नेहा ने कार स्टार्ट किया और वह निकल पड़ी. बाहर शहर में कोई खास हलचल नहीं थी, माहौल बिल्कुल शांत लग रहा था. वैसे भी नेहा का घर जिस जगह पर था वह मेन शहर से कुछ दूरी पर था. कुछ दूर तक सड़कें भी खाली थीं फिर भी नेहा अपनी आदत के अनुसार कार 40 Kmph से ज्यादा नहीं ड्राइव कर रही थी. रुक रुक कर फुहारें पड़ रही थीं. इसलिए उसने वाइपर चला रखा था. कुछ दूर चलने के बाद एक बस स्टैंड पड़ता था. नेहा कॉलेज जाने के लिए यहीं से बस पकड़ती थी. बस स्टैंड पर उसे एक आदमी खड़ा दिखा जिसका चेहरा उसे जाना पहचाना लगा. विंड स्क्रीन पर धुंधलापन रहने से उसका चेहरा साफ़ नहीं देख सकी थी.

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